Farhad ansari

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बहसें फ़ुजूल थीं यह खुला हाल देर से ||अकबर इलाहाबादी

बहसें फिजूल थीं यह खुला हाल देर में

अफ्सोस उम्र कट गई लफ़्ज़ों के फेर में

है मुल्क इधर तो कहत जहद, उस तरफ यह वाज़
कुश्ते वह खा के पेट भरे पांच सेर मे

हैं गश में शेख देख के हुस्ने-मिस-फिरंग
बच भी गये तो होश उन्हें आएगा देर में

छूटा अगर मैं गर्दिशे तस्बीह से तो क्या
अब पड़ गया हूँ आपकी बातों के फेर में
                                                  ~अकबर अलाहाबादी

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